अब महुए से शराब नहीं बल्कि बनेगी हलवा-खीर और बर्फी, जैव विविधता बोर्ड ने दी मंजूरी
टीकमगढ। अब महुए के भी दिन फिरने वाले हैं। इससे शराब नहीं बल्कि हल्वा-खीर, बर्फी समेत अन्य खाद्य पदार्थ बनेंगे। महुए का वैज्ञानिक रूप से मूल्य संवर्धन कर इससे बेहतर उत्पादन तैयार करने की कृषि महाविद्यालय की योजना को जैव विविधता बोर्ड ने मंजूरी दी है। बोर्ड इसके लिए वित्तीय सहायता भी मुहैया करवा रहा है।
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बुंदेलखंड में महुआ ग्रामीण क्षेत्रों के सीमांत किसानों और मजदूर वर्ग की आय का प्रमुख साधन है। गर्मियों में आने वाले इसके फूल और फल को सुखाकर सस्ते दामों पर बेचा जाता है। इसका उपयोग मुख्य रूप से शराब बनाने में होता है। जैव विविधता बोर्ड ने इस प्रोजेक्ट के लिए नौ लाख रुपए स्वीकृत किए हैं। उन्नत भारत अभियान के तहत कृषि महाविद्यालय द्वारा महुए से आजीविकास चलाने वालों को खाद्य पदार्थ बनाने ट्रेनिंग दी जाएगी।
कृषि वैज्ञानिक डॉ. ललित मोहन बल और डॉ. योग रंजन ने बताया कि महुए की सौंधी सुगंध और मिठास लोगों को आकर्षित करती है। पिछले साल लॉकडाउन में जब देशभर में सेनेटाइजर की मांग बढ़ी तो कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिकों ने महुए से मिलने वाले एल्कोहल से देशी सैनेटाइजर बनाया था। इसमें तुलसी, एलोवेरा और लेमनग्रास का रस मिलाया था। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक महुए के फूलों से काफी मात्रा में शर्करा, पोषक तत्व जैसे विटामिन ए, सी और खनिज तत्व होते हैं। फूलों को परिष्कृत कर इसका उपयोग प्राकृतिक मिठास के यप में किया जा सकता है। महुए का माइक्रोवेब, हॉट एयर, बीओडी की मदद से निर्जलीकरण कर सुखाया जाएगा। इससे इनमें पोषक तत्व बने रहेंगे। महुए से मिली मिठास का उपयोग खीर-हलवा और बर्फी आदि में किया जा सकेगा।